TheBlueprint
Designing A Line Of Thinking
टीवी की विकिपीडिया से बिकीमीडिया तक का अद्भुत विकास!!
भारत कितना विकास कर रहा है हर क्षेत्र में , अब चाहे वह विज्ञान हो या शिक्षा , आयुर्वेद हो या रक्षा, सब कुछ विकास की श्रेणी में आता है । परन्तु कमाल की बात तो यह है कि मीडिया ने भी खुद को इस विकास की श्रेणी में आने से नहीं पीछे रहने दिया, यानी कि आज हमारे देश की मीडिया ने इस विकसित होने की होड़ा- होड़ में एक ऐसा कमाल कर दिया कि अब उनकी तुलना गूगल बाबा की विकिपीडिया से करी जा रही है। यह तुलना वाली बात पढ़कर मन में बड़े ख्याल आ रहे होंगे की ये भला कैसे? पर चिंता मत कीजिए यह लेख अधी हकीकत अधा फसाना नहीं है ! बल्कि हम तो ताल ठोक के सिद्ध कर रहे हैं कि अगर गूगल के पास विकिपीडिया है तो भारत के पास बिकीमीडिया!!
सही जानकारी देने की जिम्मेदारी स्कूल में इन्साइक्लोपीडिया , फोन में विकिपीडिया और टीवी में मीडिया या फिर आजकल बिकीमीडिया की होती है।बिकीमीडिया , यानी कि नेताओं के वोट बैंक का और मीडिया के नोट बैंक का साधन । दूसरों की राय पूछने वाले और उनकी राय का सम्मान करने वाले आज अपनी राय को सही
ठहराने के लिए अत्यंत विनम्र भाषा का प्रयोग नहीं करते ।
बड़ी ही विचित्र बात है कि हमारी मीडिया ने तो इतनी तरक्की की कि शांति से हल्ला गुल्ला करने वाले पास-दर्शन को भी मात देकर आजकल चिल्ला कर शांतिपूर्वक समाचार सुनाने का एक मजेदार ट्रेंड चलाया है। इस तरीके से समाचार सुनने से देखने वाले को ऐसा लगता है जैसे मानिए वह किसी ऐसी कक्षा में खड़े हैं जहां बेचारे शिक्षक को आने में पांच दस मिनट की देरी हो गई हो।
ऐसे न्यूज चैनलों के नाम गिनते गिनते हम थक जाएंगे ...क्यूंकि भारत में सारे चैनल ऐसे नहीं तो वैसे इस चलन का पालन करते हैं। इस चलन के महारथी चैनल और उनके बड़े ही संस्कारी और शुद्ध हिन्दी का प्रयोग करने वाले ऐंकर श्रीमान गज़ब लौस्वामी जी , जो टीआरपी का ताज सिरपर लेकर बैठे है , परन्तु अपने चैनल योर भारत छोड़कर इन्हे एक चैनल से बड़ा प्रेम है जिसका नाम यह दिनभर ऐसे जप्ते है जैसे नारद जी नारायण का और इनका वह अत्यंत प्रिय चैनल है कामकाज-तक । खेर कामकाजतक के कामकाज की बात बादमें , फिलहाल तो योर भारत का हाल जानते हैं और उनके शुद्ध हिंदी प्रयोग करने वाले एंकर को पहचानते हैं। अद्भुत कलाओं वाले शायद इस धरती पर यह एक ही हैं जो सवालों का तो हल्ला बोल देते हैं परन्तु जब कोई बेचारा जवाब देना शुरू करता है तो उसके आधे जवाब में ही उनका दूसरा सवाल अपनी टाँग अड़ाने लगता है, परन्तु यह अति शांतिप्रिय हैं। । जीतने खास ये हैं उतने ही अद्भुत और खास हैं वह लोग जो इनकी बेहेस का हिस्सा रोजाना बनते हैं , हर रोज़ विपक्षी प्रवक्ता चंद कागज के टुकड़ों के लिए अपने गले में रोज़ ज़िल्लत की माला पहन लेते हैं और अगले दिन वोह जिल्लत की माला घर छोड़कर नई माला पहनने के लिए और नए कागज जिनपर गांधी जी का चेहरा मुस्कुराता रहता है उन्हें लेने के लिए उपस्थित हो जाते हैं ।
लौस्वामी जी से प्रभावित एक और महान हस्ती है इस मीडिया जगत में , श्रीमान कमीज़ देवगन। इनके पास बहस कराने का एक ऐसा अद्भुत ढंग है कि सुनने या देखने वाले को ऐसा लगेगा कि मानिए वह रविवार के दिन सरोजिनी नगर बाज़ार में खड़े होकर "सो के दो ,सो के दो,सो के दो" का मधुर गीत सुन रहे हों।
- Yamini Gaur
चलिए यह तो हो गए बहस के अद्भुत तरीके , परन्तु पास-दर्षण को मात देने वाले इन मीडिया चैनलों ने समाचार कहने के भी बड़े अद्भुत तरीके निकाले हैं। एक तरफ जहां दीमक चौरसिया अंतरिक्ष सूट पहनकर समाचार सुनाते हैं वहीं दूसरी तरफ श्रीमान भूरेश दोहान ने अपने शो बिंदास खोल में ऐसे हाथ घुमाया कि मानिए एक बार को तो ऐसा लगे की वह अभी शक्तिमान बनकर उड़ जाएंगे। विकास की हद तो तब हुई जब एक अत्यंत संस्कारी और शांत स्वभाव के किसी व्यक्ति ने फ्यूज २४ कि एक बहस में एंकर के मुंह पर पानी से भरा गिलास ही फेंक दिया। समाचार सुनाने या बहस करवाने से ज्यादा तो श्रीमान गज़ब लौस्वामि जी अपने हिंदी चैनल में एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में भागते दिख रहे थे पिछले साल परंतु धन्यवाद है इस लोकडाउन का की अब न्यूज़ चैनल पर मैराथन नहीं दिख रही परन्तु आश्चर्यजनक बात तो यह है कि न्यूज भी नहीं दिख रही।
गांधी जी वाले गुलाबी नोट किसको नहीं पसंद और टीआरपी कमाने का सबका अपना अपना है ढंग, परन्तु एक ऐसे भी एंकर हैं श्रीमान हरीश बीमार जी जिन्होंने ने अपनी टीआरपी की चिंता किए बिना यह संदेश दे दिया कि अपने घर से सभी को दीवार पर चिपके टीवी और हाथ में लिपटे फोन को उठाकर फेंक देना चाहिए , दाद देनी पड़ेगी इनकी सच्चाई की।
आजकल के मीडिया के खोज खबर का कच्चा चिट्ठा तो तब खुलता है जब एक ही खबर के एक ही वाक्य को यह चार अलग ढंग से बोल कर दिखाते हैं और फिर के जब खोज खबर उस स्तर पर होती है जिस स्तर पर किसी भी कक्षा में विद्यार्थी को एक और साल उसी कक्षा का अनुभव करने के लिए कह दिया जाता है तो सवालों
में ऐसी तरक्की होती है की देखने वाला तो हो ही हो परन्तु जवाब देनेवाला भी हैरान हो जाए और फिर मजबूरन देखने वाले को रिमोट उठाकर आगे बढ़ना पड़ता है।
यह था हमारा मीडिया या फिर जो आजकल बड़ों का कार्टून चैनल बन चुकी है उसका डी. एन. ए यानी कि दैनिक न्यूज का एनालिसिस या विश्लेषण । आखिर में सौ बात की एक बात तो यह है कि पूछता है भारत की स्वच्छ भारत अभियान में हमारा मीडिया साथ कब देगा?