TheBlueprint
Designing A Line Of Thinking
कोरोना काल , कक्षाएं बेहाल !!
- Shriya, Mahima &Varda
कोरोना काल ने तो दुनिया उलट पुलट ही कर दी । एक जगह जहां पहले लोग ऑफिस से छुट्टी लेकर आनंद उठाते थे वहीं दूसरी तरफ बच्चे स्कूल न जाने के विचित्र बहाने बनाते थे , पर अब तो खुले आसमान का नज़ारा , हरी घास के ऊपर वाली ओस और बाहर की चकाचौंध देखने को दिल मचल रहा है। पहले जब बच्चे बाहर से खेलकर आते थे तो मजाल है कोई उनसे हाथ धुलवाकर दिखा दे! अब तो हर पल यही बच्चे हाथों को सेनिटाइज करते या धोते दिख रहे हैंI
इस कॉरोना काल में कुछ उभरते सितारे भी दिखे हैं, अर्थात पहले जो मम्मी पीली दाल बनाते बनते थक जाती थीं, अब वही मम्मी आज नए किस्म के व्यंजन बनाकर अपना हुनर दिखला रही हैं। परन्तु चर्चित विषय यह है कि आखिर यह गज़ब हुआ कैसे ? देखते ही देखते ऐसे बदलाव आ गया कि कलयुग की कड़वी सच्चाई से परिचय सिर्फ़, बड़े-बूढों का ही नहीं बल्कि छोटे- छोटे बच्चों का भी हो गया है। पर अब इस घड़ी में हम कर भी क्या सकते हैं?
बदलाव तो काफी क्षेत्र में आए हैं और इनमें से एक क्षेत्र है पढ़ाई का…. पहले किसी कक्षा में संस्कृत का एक बहुत प्रसिद्ध श्लोक पढ़ा और याद किया जाता था :-
काक चेष्टा , बको ध्यानं,
स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी , गृहत्यागी ,
विद्यार्थी पञ्च लक्षणं।
परंतु, आजकल तो सब जगह " ज़ूम क्लासेस" की धूम मची हुई है…. वो कहते है न, " हैपनिंग" ! बच्चों से लेकर शिक्षक तक हैरान और परेशान हैं , सब कुछ मानो चुटकियों में बदल गया । पहले बच्चे विद्यालय जाने के नाम पर रोते थे , और आज वोही बच्चे विद्यालय जाने के लिए रोते है ….मानो जैसे स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर विद्यालय जाना एक सपना सा बं गया हो।
परंतु इस काॅरोना काल में भी कक्षाओं ने हमारा पीछा न छोड़ा| ऐसे नहीं तो ऑनलाइन ही चल पड़ीं|कक्षाओं में जाहिर है बच्चे भी थे, और जब बच्चे थे तो शरारत का होना तो स्वभाविक था| ऐसे में विद्यालय की जगह ली फ़ोन (दूरभाष यंत्र) और लैपटॉप ने|फिर जिन बच्चो कि शरारत पूरे स्कूल मै ना समा पाई वह लैपटॉप और फोन में कहा समाती| एक तरफ़ कुछ बच्चों ने गाने बजाए तो दूसरी तरफ़ कुछ ने अजीब आवाज़ निकालकर अध्यापिकाओं की उबाऊ कक्षा में मनोरंजन किया , ऐसे ही सहपाठियों की शरारत का जवाब देने के लिए एक विद्यार्थी ने तो ' रिनेम' सुविधा के प्रयोग से उप-प्रधानाचार्या होने का ढोंग ही कर डाला| ऐसा करके उन विद्यार्थियों ने अन्य बच्चों को 'प्राइवेट चैट’ के माध्यम से माता- पिता सहित विद्यालय आने का आदेश दे डाला।
अब इन बच्चो के तेवर भी बदल गए , बको ध्यानाम और अल्प- हारी का हाल कुछ ऐसा हो गया था। ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान कैमरे रूपी पर्दे के पीछे , व्यंजनों का सेवन, वीडियो गेम में गोलियों की बारिश ,थोड़ा सा ऊंघना तो कभी सहपाठियों के साथ ' चैटिंग' करना मानो एक अलग ही आनंद की अनुभूति करवाता है …. और इसी के चलते, यह सवाल शिक्षकों के दिमाग में आता है कि "कैमरे के पीछे क्या है?" और यही सवाल परीक्षा के वक्त थोड़ा यू लंबा हो जाता है कि " कैमरे के पीछे। और टेबल के नीचे क्या है?" परन्तु जैसा कि हर विद्यार्थी चाहता है कि परीक्षा की बात बाद में होनी चाहिए … उन्हीं विद्यार्थियों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए, उन महारथी विद्यार्थियों की बात करते हैं जो कक्षा में केवल अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए या सिर्फ़ वर्चुअल उपस्थिति के लिए आते हैं और काक चेष्ठा वाले श्लोक में अपनी पढ़ाई के लिए चेष्ठा का परिचय बखूबी से देते जाते हैं।ओलनाइन कक्षा में उपस्थित इन विद्यार्थियों के पास मानो आलस का एक मटका है , जिसका कोई टला नहीं , जब चाहे वीडियो और माइक बंद करने की सुविधा का लाभ उठाकर अपने कंबलों में गुलाबी स्वप्न लोक की सैर पर निकल पड़ते हैं। कमाल की बात तो यह है कि चर्चा के समय जब शिक्षक इन छात्रों पर सवाल की बंदूक तानते हैं तो जैसे अपने वीडियो गेम में उसका सामना करने की बजाए , यह तो गेम ही छोड़कर भाग जाते हैं अर्थात सवाल गुम , जवाब गुम , और छात्रा बी गुम , बको ध्यानं वाले श्लोक को अपने जीवन से गायब कर दिया है वैसे ही यह कक्षा से भी चुप चाप सायोनारा करके स्वयं लुप्त हो जाते हैं। “तन से कुछ और ,और में से कुछ और ” ।परन्तु सब विद्यार्थियों से वाकिफ़ हमारे शिक्षक सब जानते हैं , क्यूंकि अध्यापक तो सर्वज्ञ है , तभी तो वह अध्यापक है और हम तो हम है ही , यानी विद्यार्थी!
अब ऑनलाइन कक्षाओं का दौर जारी है तो उनमें परीक्षाएं भी चल रही हैं । बदलाव सिर्फ़ इतना है कि अब परीक्षा के समय दिमाग से ज़्यादा गूगल बाबा साथ देते हैं क्योंकि "बको ध्यानं" से तो विद्यार्थियों का ध्यान ही हटा रहता है और कुछ अधिक समझदार विद्यार्थी तो सिर्फ़ परीक्षा के समय ही उनकी धूल में लिपटी हुई किताबें खोलते हैं (बस एक फॉर्मूला)! विद्यार्थी तो चालाकी करते हैं परन्तु चालाकी करने के लिए समझदार होना भी बहुत ज़रूरी है…. परंतु हमारे शिक्षक भी हमसे दो कदम आगे हैं। अब अगर बच्चे सेर हैं तो शिक्षक भी सवा सेर !! यानी नकल करते वक्त इन अधिक बुद्धिमान विद्यार्थियों के जीवन में "हैपनिंग" कुछ ऐसे हुई कि हमारे शिक्षकों की चील की नज़रों से वह बच ना सके ।
हद की चरण सीमा तो तब पार हुई जब बच्चे गृहकार्य को बाल श्रम और अपने स्क्रीन टाइम को क्वालिटी टाइम बताने लगे ।
इन कुछ घटनाओं को मद्देनजर रखते हुए ज़ूम से हमारी यही विनती है कि अगले अपडेट में वर्चुअल डंडे और कान मरोड़ने की सुविधा भी प्राप्त हो जाए!! अरे … अरे… हम तो भूल ही गए कि शारीरिक दंड (corporal punishment) कानूनी जुर्म है ।
खेर इन शरारतों का जवाब अभी तक तो मिला नहीं … पर उम्मीद हैं कि हमारे शिक्षक भी अपने खुराफाती दिमाग से इसका कोई तोड़ ज़रूर निकालेंगे।
यह तो हो गई विद्यार्थी और शिक्षकों के बीच के कुछ खट्टे- मीठे संबंधों के किस्से , परन्तु इन विद्यार्थियों और शिक्षकों ने अपनी रसोई के साथ भी संबंध बनाए हैं, इस लॉकडॉउन में। कॉरोना काल में अध्यापक एवं विद्यार्थियों ने कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाने का प्रयास किया । सामाजिक मीडिया (सोशल मीडिया) में दूसरों के स्टोरीज/स्टेटस देख कर , कई में जुनून सवार हो गया और कमर तोड़ मेहनत के पश्चात उन्हें अपने बनाए हुए व्यंजन ' शायद ' स्वादिष्ट लगे । बस इस ही ' हैपनिंग' के कारण क्या से क्या हो गया “देखते देखते ” अर्थात वास्तविकता इतनी प्रभावशाली ना निकली और खाना बेवफ़ा हो गया!
इस कॉरोना काल ने सबके जीवन में कई बदलाव किए हैं .. जहां एक तरफ विद्यार्थियों को विद्यालय का महत्व बतला दिया …. वहीं दूसरी तरफ शिक्षकों को भी आपने काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा , अल्पहारी और गृहत्यागी विद्यार्थयों की याद सताने लगी है. ...
यादों की बात करें , तो अब हर एक व्यक्ति अपनी ज़िंदगी की छोटी से छोटी चीज को याद कर रहा है , परन्तु हैपेनिंग तो हैपेनिंग होती है और इस हैपेनिंग को हम न्यू नॉर्मल के रूप में कैसे स्वीकार करते हैं वह अब हम पर निर्भर करता है।
Life in Covid - Teachers
Listen to what the teachers have been doing in the pandemic and their experiences.
Life in Covid - Students
Listen to what other students have been doing in the pandemic and their experiences.